क्या आप जानते हैं की राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूँगा हो जाता है। आपका
हिन्दी लेख/संदेश/पोस्ट बहुत ही ज्ञानवर्धक, बहुत ही रोचक,सार्थक और विश्लेष्णात्मक
हो सकते हैं, हिंदी के प्रति आपका लगाव वन्दनीय है! राष्ट्र भाषा हिंदी में लिखने
वालों को और हिंदी भाषा का सम्मान करने वालों को मेरा हार्दिक आभार।
हिन्दी-भाषियों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठापित करने में अपना
जीवन स्वाहा कर दिया। क्या इस बात का कोई महत्त्व नहीं है कि बह्म समाज के नेता
बंगला-भाषी केशवचंद्र सेन से लेकर गुजराती भाषा-भाषी स्वामी दयानंद सरस्वती ने जनता
के बीच जाने के लिए 'जन-भाषा', 'लोक-भाषा' हिन्दी सीखने का आग्रह किया और गुजराती
भाषा-भाषी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने मराठी-भाषा-भाषी चाचा कालेलकर जी को सारे
भारत में घूम-घूमकर हिन्दी का प्रचार-प्रसार करने का आदेश दिया। सुभाषचंद्र बोस की
'आजाद हिन्द फौज' की राष्ट्रभाषा हिन्दी ही थी। श्री अरविंद घोष हिन्दी-प्रचार को
स्वाधीनता-संग्राम का एक अंग मानते थे। हिन्दी के प्रबल समर्थक न्यायमूर्ति श्री
शारदाचरण मित्र ने तो ई. सन् 1910 में यहां तक कहा था - यद्यपि मैं बंगाली हूं
तथापि इस वृद्धावस्था में मेरे लिए वह गौरव का दिन होगा जिस दिन मैं सारे
भारतवासियों के साथ, 'साधु हिन्दी' में वार्तालाप करूंगा। बंगला-भाषी बंकिमचंद्र
चट्टोपाध्याय और बंगला-भाषी ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने भी हिन्दी का समर्थन किया था।
इन अहिन्दी-भाषी-मनीषियों में राष्ट्रभाषा के एक सच्चे एवं सबल समर्थक राष्ट्रपिता
महात्मा गांधी थे|
युधवीर सिंह लाम्बा भारतीय